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Tuesday, November 11, 2025

सभी सांप्रदायिक दंगे 1857 के बाद ब्रिटिश शासकों द्वारा बोए गए बीजों से शुरू हुए

इंडियासभी सांप्रदायिक दंगे 1857 के बाद ब्रिटिश शासकों द्वारा बोए गए बीजों से शुरू हुए

ब्रिटिश शासक हिंदू धर्मगुरुओं को मुसलमानों के खिलाफ बोलने के लिए और मौलवियों को हिंदुओं के खिलाफ बोलने के लिए पैसे देते थे

बाबरी मस्जिद विवाद

अयोध्या में हुनमान गढ़ी के पास बनी एक मस्जिद गिराए जाने की अफ़वाह को कई मुस्लिम चरमपंथी एक बड़े सांप्रदायिक विवाद में बदलने पर अड़े थे. इन चरमपंथियों का नेतृत्व मौलवी मोहम्मद सालेह और शाह ग़ुलाम हुसैन कर रहे थे जो इस बात पर अड़े थे कि हुनमान गढ़ी के पास मस्जिद की दोबारा तामीर की जाये.

नवाब वाजिद अली शाह ने उनको समझाने की बहुत कोशिश की. नवाब ने सुल्तानपुर के गवर्नर आग़ा अली ख़ान और अपने मंत्री राजा मान सिंह के इस विवाद को हल करने की ज़िम्मेदारी दी मगर कोई हल नहीं निकला और मौलवी सालेह और शाह ग़ुलाम हुसैन के नेतृत्व में 26 जुलाई 1855 ई० को जोशीले मुसलमानों का एक दल अयोध्या के लिए निकल पड़ा और अयोध्या पहुंच कर वह सब बाबरी मस्जिद के परिसर में ठहरे.

जब अयोध्या के लोगों को मुसलमानों के आने की सूचना मिली तो हज़ारों की भीड़ ने जमा हो कर इन लोगों पर हमला कर दिया जिसमें बहुत से लोग मारे गए और बाक़ी जान बचा कर भागने पर मजबूर हो गए. इस घटना का अवध के दूसरे शहरों में में प्रभाव पड़ा और कई जगह तनाव फैल गया और कुछ चरमपंथी तत्व मुसलमानों को भड़काने में लग गए.

उलेमा की समिति ने हिंसा का समर्थन नहीं किया

अवध के अमेठी इलाक़े के रहने वाले मौलवी अमीर अली अमेठवी के नेतृत्व में बहुत से मुसलमान एकत्रित हुए और उन्होंने बाबरी मस्जिद के अंदर मारे गए मुसलमानों का बदला लेने और मस्जिद दोबारा बनाने का फैसला किया. अवध की हुकूमत ने उनको समझाने की बहुत कोशिश की. यहां तक कि 30 अगस्त 1855 ई० में उलेमा का एक दल अयोध्या भेजा कि वह सच्चाई का पता लगाए.

उलेमा की इस कमेटी ने किसी मस्जिद को गिराए जाने की बात को निराधार बताया लेकिन यह कहा कि जो लोग अयोध्या में मारे गए उनके परिवारजन को खूं बहा (आर्थिक मुवाअज़ा) दिया जाए, मगर उलेमा की इस रिपोर्ट को मौलवी अमीर अली ने ख़ारिज कर दिया और मुसलमानों को जिहाद पर चलने का आह्वान करने लगे. इंडियन हिस्ट्री कलेक्टिव नामक वेबसाइट में इस विवाद पर वलय सिंह ने लिखा है कि “अयोध्या में चल रहे मस्जिद के विवाद से अंग्रेज़ों के गवर्नर जनरल लार्ड डलहौज़ी यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि अयोध्या का मामला इतना गर्म होगा कि पूरा अवध में ख़ून में नहा जाएगा.” इसी लिए उन्होंने वाजिद अली शाह को धमकी दे दी थी कि यदि वह अमीर अली पर क़ाबू नहीं पा सके तो उनको सत्ता से बेदख़ल कर दिया जाएगा.

वाजिद अली शाह की शांति वार्ता

मामले को हल करने के लिए वाजिद अली शाह ने अमीर अली के सामने यह प्रस्ताव रखा कि वह अयोध्या में एक अन्य मस्जिद बनवा देंगे और उनकी तरफ़ से मक्का और मदीना के लिए एक बड़ी रक़म भी भेज देंगे मगर इन सब बातों को अमीर अली ने मानने से इंकार कर दिया और जिहाद का एलान कर दिया. हालंकि उस समय के बड़े सुन्नी उलेमा मौलवी साद उल्ला और ,मुफ़्ती मोहम्मद यूसुफ़ और शिया धर्म गुरु मौलाना सय्यद अहमद ने अमीर अली के जिहाद के नारे को कंडम करते हुए उसको ग़ैर इस्लामी अभियान कहा.

वाजिद अली शाह ने युद्ध के जरिए रोका आमिर अली का जिहाद

मगर अमीर अली पर किसी बात का असर नहीं हुआ और वह अपने साथियों के साथ 5 नवम्बर 1855 ई ० को लखनऊ से अयोध्या के लिए चल पड़े उनको एक बार फिर समझाने के लिए वाजिद अली शाह ने शेख़ हुसैन अली को भेजा लेकिन वह नहीं माने.

मगर जब वह अपने साथियों के साथ कुछ ही मील आगे गए तो रिदौली के पास अंग्रज़ों की सेना जनरल बार्लो के नेतृत्व में उनके सामने आ गई जिस के बाद दोनों के बीच युद्ध हुआ जिसमें अमीर अली के 400 सैनिक और अंग्रज़ों के 80 फौजी मारे गए.

अयोध्या के विवाद को वाजिद अली शाह ने अवध में फैलने नहीं दिया उसके बावजूद इस घटना के सिर्फ तीन महीने के अंदर 11 फ़रवरी 1856 ई० को वाजिद अली शाह को अंग्रज़ों ने पद से हटा दिया.

हिंदू और मुसलमान एक दूसरे की मदद करते थे

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मारकंडे काटजू ने दि नेशन में छपे अपने एक लेख में हिन्दू मुस्लिम विवाद के बारे में यही लिखा है कि “1857 तक भारत में कोई धार्मिक समस्या नहीं थी. हिंदू और मुसलमानों के बीच कई अंतर तो थे. जैसे कि हिंदू मंदिरों में जाते थे और मुसलमान मस्जिदों में जाते थे लेकिन उनमें कोई दुश्मनी नहीं थी. वास्तव में हिंदू और मुसलमान एक दूसरे की मदद करते थे हिन्दू अगर मुसलमानों के साथ ईद मनाते थे तो मुसलमान हिन्दुओं के साथ होली और दिवाली मनाते थे.

मुस्लिम शासक जैसे कि मुगल, अवध के नवाब, मुर्शिदाबाद के नवाब और टीपू सुल्तान आदि सभी धार्मिक रूप से तटस्थ थे, वह रामलीला का आयोजन करते थे और होली, दिवाली आदि में भी भाग लेते थे .

ग़ालिब जिस तरह अपने हिंदू मित्रों मुंशी शिव नारायण अराम और हरगोपाल तफ्ता आदि को पत्र लिखते थे , उससे पता चलता है कि उस समय के हिंदू और मुसलमान कितने करीब थे.

ब्रिटेन के खिलाफ हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर लड़ाई लड़ी

1857 ई० में जब विद्रोह हुआ, तो ब्रिटेन के खिलाफ हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर लड़ाई लड़ी. इससे ब्रिटिश सरकार को इतना धक्का लगा कि उन्होंने विद्रोह को दबाने के बाद फूट डालो और राज करो की नीति अपना ली. सभी धार्मिक दंगे 1857 के बाद शुरू हुए जो ब्रिटिश शासकों द्वारा रचे गए थे. वह हिंदू धर्मगुरुओं को बुलाते थे और उन्हें मुसलमानों के खिलाफ बोलने के लिए भुगतान करते थे और साथ ही मौलवियों को हिंदुओं के खिलाफ बोलने के लिए भुगतान करते थे. इस तरह हमारी राजनीति में सांप्रदायिक जहर घुल गया.” (जारी)

1 – पहला भाग

2 – दूसरा भाग

3 – तीसरा भाग

4 – चौथा भाग

5 – पांचवां भाग

6 – छठा भाग

7 – सातवां भाग

8 – आठवां भाग

9 – नौवां भाग

10 – दसवां भाग

11 – ग्यारहवां भाग

12 – बारहवां भाग

13 – तेरहवां भाग

14 – चौदहवाँ भाग

15 – पन्द्रहवाँ भाग

16 – सोलहवां भाग

17 – सत्रह भाग

18 – अठारहवाँ भाग

19 – उन्नीसवां भाग

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