बाबर भारत पर शासन करने वाला एकमात्र विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी था, अन्य ने मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ मुक़ाबला किया
औरंगज़ेब की नीतियों ने मुग़ल शासन की चूलें हिला कर रख दीं और फिर कोई भी मुग़ल शासक दोबारा मुग़लों के पुराने वैभव को प्राप्त न कर सका। वैसे तो मुग़ल सलतनत औरंगज़ेब के बाद लगभग डेढ़ सौ वर्ष तक चली ।
ज़रा सोचिये कि बाबर से लेकर औरंगज़ेब तक 182 वर्ष में (शेरशाह सूरी के 10 वर्ष घटा कर) कुल 6 मुग़ल शासक हुए और फिर औरंगज़ेब से लेकर बहादुर शाह ज़फ़र तक के 150 वर्ष में 13 मुग़ल बादशाह हुए और मुग़ल शासन का दायरा बढ़ने के बजाय हर दिन घटता गया।
रही सही कसर ईरान के शासक नादिर शाह ने पूरी कर दी। उसने मुग़ल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले के राज्य पर हमला करके दिल्ली (1739 ई० में) को फ़तेह कर लिया। नादिर शाह ने ना सिर्फ यह कि दिल्ली को लूटा बल्कि उसने दिल्ली के मुसलमानों का क़त्ल ए आम भी किया मगर विजयी होने के बावजूद उसने भारत पर राज्य नहीं किया।
नादिर शाह ने मोहम्मद शाह रंगीले को उसकी सलतनत तो वापस कर दी मगर अपने साथ वह करोड़ों रुपए की दौलत और मुगलों का वह पसंदीदा तख़्ते ताऊस साथ ले गया जिसमें कोहेनूर जैसा अमूल्य हीरा जड़ा हुआ था।
बाबर के अलावा, किसी अन्य विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी ने भारत पर शासन नहीं किया
यहां पर एक बात कहना चाहूंगा कि यह अजीब बात है कि भारत पर जितने भी विदेशी शासकों ने हमला किया उनमें बाबर के अलावा किसी ने इस देश की बागडोर नहीं संभाली। ग़ौरी ने अपनी जगह ग़ुलाम वंश को सत्ता सौंपी। तैमूर ने विजय प्राप्त करने के बाद सय्यदों को सलतनत सौंपी, नादिर शाह भी वापस अपने देश चला गया और अहमद शाह अब्दाली ने भी इस देश पर राज न करने का फैसला किया। ख़ास बात यह है कि भारत पर आक्रमण करने वालों में सिर्फ ग़ौरी का मुक़ाबला राजपूतों से और अब्दाली का मराठों से हुआ उसके अलावा सारे आक्रमणकारियों का मुक़ाबला मुस्लिम सेनाओं ने किया। क्या यह इस बात का सुबूत नहीं है कि यह सारी लड़ाइयां धर्म के लिए नहीं बल्कि धन दौलत के लिए थीं?
मुग़ल साम्राज्य की कमज़ोरी ने अंग्रेजों के लिए रास्ता हमवार कर दिया
मुग़ल सलतनत के जब बुरे दिन आये तो मुग़ल शासक शाह आलम के लिए अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने बंगाल के शासक मीर क़ासिम के साथ मिल कर बक्सर के युद्ध में अंग्रज़ों का मुक़ाबला किया लेकिन परास्त हुए और भारत पर अंग्रज़ों के शासन का रास्ता साफ़ हो गया।
मुग़ल दरबार इतना कमज़ोर हो चुका था कि उसके नियुक्त किये हुए गवर्नर और सूबेदार खुद शासक बन गए थे। उस समय कहने को तो मुग़ल शासन था लेकिन कहीं मराठों का राज था कहीं हैदर अली और टीपू सुल्तान शासक थे कहीं सिरजुद्दौला की हुकूमत थी। यहाँ तक कि अवध के नवाब गाज़ीउद्दीन हैदर ने भी मुग़ल शासन से मुंह मोड़ कर 1814 ई ० में अपनी शाही स्थापित करने का एलान कर दिया था।
अंग्रेजों का भारत पर क़ब्ज़ा
फिर इन स्वाधीन सलतनतों को अंग्रज़ों का सामना करना पड़ा और धीरे धीरे सब को अंग्रेज़ हड़पते गए यहाँ तक कि मुग़ल शासन सिर्फ दिल्ली तक रह गया।
इस माहौल में अंग्रज़ों ने देश में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच फूट डालना शुरू कर दी इस काम के लिए उन्होंने अवध की ज़मीन को अपना केंद्र बनाया।
अवध में हिंदुओं ने मुसलमानों के लिए मस्जिदें और मुसलमानों ने हिंदुओं के लिए मंदिर बनाए
क्योंकि अवध एक ऐसा राज्य था जहाँ हिन्दू वर्ग के लोग मुसलमानों के लिए मस्जिदें और इमाम बाड़े बनवा रहे थे तो मुसलमान हिन्दुओं के लिए मंदिरों का निर्माण कर रहे थे।
शासक नवाब वाजिद अली शाह ने हिन्दुओं और मुसलमानों को एक किया
अवध के आख़िरी शासक नवाब वाजिद अली शाह ने तो अपने दरबार को हिन्दू मुस्लिम एकता का केंद्र बना रखा था। उन्होंने भारत के शास्त्रीय संगीत और नृत्य को बढ़ावा देने में बहुत अहम रोल निभाया। उन्होंने जहाँ एक तरफ़ मुसलमानों की संस्कृति और धर्म का ख़्याल रखा वहीं हिन्दू धर्म का भी बेहद ख़्याल रखा। उन्होंने राम लीला और रास लीला के मंचन में ज़बरदस्त दिलचस्पी दिखाई और लुप्त होती कलाओं को भी बढ़ावा दिया।
उन्होंने अपने दरबार में आने वालों के लिए यह शर्त लगा दी कि वह सलाम अलैकुम या नमस्कार कह कर शासक को सम्बोधित नहीं करेंगे बल्कि पुरुष आदाब और महिलाएं तसलीम कहेंगी, ताकि दरबार में आने वाले का धर्म पता न चले।
अवध पर अंग्रेजों के कब्जे के बाद हिंदू-मुस्लिम एकता खत्म हो गयी
नवाब वाजिद अली शाह हिन्दू और मुस्लिम समुदायों में लोक प्रिय थे यही बात अंग्रेज़ों को हज़म नहीं हो रही थी। उनको अवध पर क़ब्ज़ा करना था इस लिए अवध में उन्होंने अशांति पैदा की और अयोध्या की पावन नगरी को हिन्दू मुस्लिम विवाद का अखाड़ा बनाया।
अयोध्या में सैकड़ों वर्ष से हिन्दू मुसलमान मिल कर रहते आये थे मगर एक छोटी सी चिंगारी ने वहां के अमन को बर्बाद कर दिया। यह क़िस्सा इस प्रकार है कि 1855 ई० में अयोध्या के प्रसिद्ध हनुमान गढ़ी मंदिर के पास एक मुसलमान फ़क़ीर की एक कुटिया थी जिसमें वह रहता भी था और उसी में नमाज़ भी पढ़ता था। जब वो फ़क़ीर मर गया तो उसकी कुटिया को मंदिर प्रशासन ने हटा दिया। जिस के बाद यह बात फैला दी गई कि हनुमान गढ़ी के पास एक मस्जिद को गिरा दिया गया, जबकि हिन्दू वर्ग का कहना था कि वहां पर कोई मस्जिद थी ही नहीं। (जारी)

