अकबर के खिलाफ प्रचार का मुख्य कारण हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ के वीर महाराणा प्रताप के साथ अकबर की सेना का टकराव हो सकता है
अकबर और दीन-ए-इलाही
अकबर के खिलाफ प्रचार का मुख्य कारण हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ के वीर योद्धा महाराणा प्रताप के साथ अकबर की सेनाओं का टकराव है।
हुमायूँ के बाद उसका पुत्र जलाल उद्दीन अकबर तख्त पर बैठा। अकबर देश का पहला ऐसा शासक था जिसने इस देश के विभिन्न धर्मों को एक साथ लाने की कोशिश की। विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं को आमने सामने बिठा कर संवाद करवाने की पहल की। अकबर ने ही इस देश में सब से पहले सेकुलरइज़्म की बात की। उसने दीन ए इलाही के नाम से एक विचारधारा
दुनिया के सामने रखी और यह बताने की कोशिश कि सभी धर्मों का स्रोत एक ही है। जिसके बाद कुछ मुस्लिम उलेमा ने तो अकबर को काफ़िर तक कह दिया और इस्लाम के सामने एक नई शरीयत लाने का इलज़ाम उस पर लगा दिया जबकि दीन ए इलाही कोई नई शरीयत या कोई नया धर्म नहीं था बल्कि सब ही मज़हबों को साथ लेकर चलने की एक कोशिश थी।
अकबर ने अपनी धर्म निरपेक्ष नीति के कारण ही देश के बड़े बड़े हिन्दुओं का दिल जीत कर उनको अपने साथ कर लिया था। राजा मान सिंह, राजा टोडर मल और राजा बीरबल उसके नवरत्नों में शामिल थे और उसकी सेना में हिन्दू सिपाही हज़ारों की तादाद में थे ।
हल्दीघाटी का युद्ध
अकबर के ख़िलाफ़ प्रोपगैंडा किये जाने का एक मात्र कारण मेवाड़ के वीर सेनानी महाराणा प्रताप से अकबर की सेनाओं का हल्दी घाटी के मैदान में होने वाला टकराव है। बहुत से लोग हल्दी घाटी के युद्ध को हिन्दू मुस्लिम के चश्मे से देखते हैं जबकि इस टकराव में धर्म नाम की कोई चीज़ नहीं थी, मेरी बात का सुबूत यह है कि हल्दी घाटी के युद्ध में महराणा प्रताप की सेना सूरी वंश के पठान नेता हकीम ख़ान सूरी के नेतृत्व में और अकबर की सेना राजपूत राजा मान सिंह की कमान में आमने सामने थीं।
उल्लेखनीय है कि शेरशाह सूरी के वंशज
हकीम ख़ान सूरी के साथ 10 हज़ार पठान सैनिक महाराणा प्रताप के लिए अपनी जान क़ुरबान करने के लिए खड़े थे और राजा मान सिंह के साथ जो विशाल फ़ौज मेवाड़ की सेना से लड़ने आई थी उसमें आधे से ज़्यादा सिपाही हिन्दू थे। खास बात यह है कि हकीम ख़ान सूरी पर महाराणा प्रताप को इतना भरोसा था कि उन्होंने हकीम ख़ान को अपना ख़ज़ांची बनाया हुआ था।
हकीम खान और महाराणा प्रताप का बलिदान
हकीम खान सूरी ने महाराणा प्रताप पर अपनी जान क़ुर्बान की मगर उस क़ुरबानी का फल यह मिला कि इसी वर्ष 28 जुलाई को कुछ सांप्रदायिक तत्वों ने हकीम खान सूरी के मज़ार में घुस कर तोड़ फोड़ की।
असल बात यह है कि हिन्दू मुस्लिम एकता के किसी भी प्रतीक को वह लोग बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं जिन्होंने इस देश को सांप्रदयिकता का अखाड़ा बना दिया है। यह तत्व महराणा प्रताप का गुणगान करते हैं उनके घोड़े चेतक की वीरता के गीत तो गाते हैं मगर महाराणा प्रताप के लिए जान देने वाले एक मुस्लिम शूर वीर की क़ब्र भी इनसे देखी नहीं जाती।
यहां पर एक अहम ऐतिहासिक घटना को लिखता चलूँ तो अच्छा रहेगा। जब महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने हिंदी के मशहूर कवि रहीम ( अकबर के नवरत्न में से एक अब्दुल रहीम ख़ान ख़ाना को बंदी बना लिया तो महाराणा प्रताप ने बेटे पर बहुत गुस्सा किया और रहीम व उनके परिवार को फौरन रिहा करने का आदेश दिया जिस के बाद रहीम ने महाराणा प्रताप की प्रशंसा में कुछ दोहे भी लिखे क्या यह इस देश के हिन्दू मुस्लिम एकता के इतिहास की गौरवपूर्ण घटना नहीं है ?
एक मुस्लिम संघर्ष: रानी चंद बीबी और अकबर की लड़ाई
यहाँ पर यह बात कहना आवश्यक है कि यदि अकबर से टकराना ही देश भक्ति की दलील था तो फिर उन शक्तियों का भी गुणगान होना चाहिए जिन्होंने मुस्लिम होते हुए भी अकबर को चुनौती दी, इन्हीं शक्तियों में से एक थीं दक्षिण भारत की बीजापुर सलतनत की मुस्लिम महिला शासक चाँद बीबी जिन्होंने अकबर की शक्तिशाली सेना का वीरता से मुक़ाबला किया लेकिन चाँद बीबी का ज़िक्र शायद ही कभी आप ने कहीं सुना हो।
जिन लोगों ने इतिहास पढ़ा है उनको मालूम है कि जब अकबर ने 1591 ई० में दक्षिण की सभी चार सलतनतों को आदेश भेजा कि वह मुग़ल सलतनत में विलय का आदेश भेजा तो मुसलमानों की इन छोटी छोटी सरकारों ने उस का घोर विरोध किया। इसी विरोध का सब से मुखर स जवाब चाँद बीबी की तरफ़ से भेजा गया और मुग़लों की शक्तिशाली सेना के आगे हथियार डालने से इंकार किया गया।
चाँद बीबी ने लगभग 9 वर्ष तक मुग़लों की सेना का डट कर मुक़ाबल किया ज़ाहिर है कि इस युद्ध में धर्म का कोई मामला नहीं था, क्योंकि यह एक मुस्लिम सलतनत का दूसरी सलतनत से टकराव था, लेकिन जहाँ कहीं भी किसी मुस्लिम शासक का हिन्दू शासक से टकराव दिखाई पड़ता है धर्म के नाम पर इतिहास के साथ खिलवाड़ करने वाले लोग नई कहानियां गढ़ने लगते हैं। अगले भाग में हम अकबर के दीन ए ईलाही और सुलह ए कुल का जो विरोध हुआ उसके बारे में चर्चा करेंगे। (जारी)

