भारत के आर्थिक परिदृश्य में टैरिफ वॉर का प्रभाव
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के पश्चात यह संकेत दिया कि वैश्विक स्तर पर चल रहे टैरिफ युद्ध के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में कई चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं। उन्होंने कहा कि इस नीति के कारण देश के निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना बढ़ गई है।
गवर्नर ने कहा कि “विभिन्न क्षेत्रों का आर्थिक परिदृश्य धुंधला पड़ गया है” और यह वैश्विक विकास दर के लिए एक नया संकट प्रस्तुत करता है। उन्होंने इस संदर्भ में उपस्थित कई आर्थिक संकेतों का उल्लेख किया, जो न केवल भारत बल्कि विश्वभर में व्यापार पर असर डाल रहे हैं। खासकर इस बात पर ध्यान दिया गया कि अमेरिका द्वारा लगाए गए जवाबी टैरिफ का भारतीय निर्यात पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
किस क्षेत्रों पर पड़ेगा असर?
गवर्नर मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि वस्तुओं के निर्यात में दबाव देखने को मिल सकता है, हालांकि सेवाओं के निर्यात में लचीलापन की उम्मीद बनी हुई है। उन्होंने कहा कि, “वैश्विक अनिश्चतताओं के कारण वस्तुओं के निर्यात पर दबाव दिख सकता है।” इस मौद्रिक नीति के तहत विश्व व्यापार में बिगड़ी परिस्थितियाँ आगे चलकर भारत की वृद्धि दर को भी प्रभावित कर सकती हैं। चालू वित्त वर्ष के लिए आरबीआई ने विकास दर के अनुमान को 6.7 प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है।
अमेरिका द्वारा पारस्परिक टैरिफ लागू करने के निर्णय से पहले भारतीय निर्यात की स्थिति काफी बेहतर थी। लेकिन अब, विभिन्न उत्पादों पर 26 प्रतिशत टैरिफ के लगने की घोषणा ने बाजार में अनिश्चितता बढ़ा दी है। उन्होंने कहा, “हालिया व्यापार शुल्क संबंधी घटनाक्रमों ने विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक परिदृश्य पर अनिश्चितताओं को और बढ़ा दिया है।”
आर्थिक नीतियों में बदलाव की आवश्यकता
आरबीआई गवर्नर ने बताया कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए केंद्रीय बैंक सावधानी से कदम उठा रहा है। उन्होंने कहा कि अलग-अलग क्षेत्रों में नीतियों में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं और वे घरेलू प्राथमिकताओं के आधार पर अपनी नीतियां बना रहे हैं।
अमेरिका के नए टैरिफ का प्रभाव आर्थिक परिदृश्य पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों के बारे में, उन्होंने कहा कि कई ज्ञात अज्ञात बातें मौजूद हैं – जैसे सापेक्ष टैरिफ का प्रभाव, निर्यात और आयात की मांग में लचीलापन, और सरकार के द्वारा अपनाए गए नीतिगत उपाय।
गवर्नर ने स्पष्ट किया कि इन सभी बातों के कारण टैरिफ के प्रतिकूल प्रभाव का स्पष्ट आकलन करना कठिन हो जाता है। उदाहरण के लिए, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत सहित 60 देशों पर उत्तरदायी टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जो 9 अप्रैल से प्रभावी होगा।
अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत
आरबीआई गवर्नर ने कहा कि “अमेरिकी डॉलर में गिरावट आई है और इससे बांड प्रतिफल में भी कमी आई है। इक्विटी बाजारों में सुधार हो रहा है; और कच्चे तेल की कीमतें तीन वर्षों के निम्नतम स्तर पर आ गई हैं।” यह संकेत करते हैं कि कुछ क्षेत्रों में सुधार की उम्मीद भी है।
हालांकि, उनका कहना था कि इन सुधारों के साथ-साथ वैश्विक अनिश्चितताओं की स्थिति भी बनी हुई है। इन सभी समस्याओं के बीच निर्यात क्षेत्र को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
भारत और अमेरिका के व्यापार आंकड़े
भारत का अमेरिका के साथ 2023-24 में वस्तुओं पर व्यापार अधिशेष 35.32 अरब अमेरिकी डॉलर था। यह आंकड़ा 2022-23 में 27.7 अरब अमेरिकी डॉलर और 2021-22 में 32.85 अरब अमेरिकी डॉलर रहा था। यह दिखाता है कि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत के कुल वस्तु निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 18 फीसदी है।
इस प्रकार, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के अनुसार, टैरिफ युद्ध से भारत की निर्यात क्षमताओं पर गंभीर असर पड़ सकता है, और यह आर्थिक चुनौतियों को और बढ़ा सकता है।
व्यापारिक संबंधों में सुधार की संभावनाएं
आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक समझौतों को समय पर पूरा किया जाए तो टैरिफ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। भारत को चाहिए कि वह अपने उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाए और नए बाजारों की तलाश करे।
इस संदर्भ में, आप[यहाँ](https://www.rbi.org.in) और[यहाँ](https://www.imf.org) अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
आरबीआई और आर्थिक नीतियों की प्रगति पर नजर रखना आवश्यक है ताकि हम इन चुनौतियों का सामना कर सकें।
अधिक जानकारी के लिए हमारे अन्य लेख पढ़ें:[महंगाई से कैसे निपटें?](https://www.financialexpress.com) और[भारत की आर्थिक नीतियां](https://www.ndtv.com) ।
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