लखनऊ: उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने महाकुंभ में गंगा में डुबकी लगाई है, जिसे लेकर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तेज हो गई हैं। इस स्नान की तस्वीरें जब से सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं, तब से भाजपा नेताओं ने तंज कसना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा है कि महाकुंभ का उद्देश्य केवल पुण्य कमाना है, न कि वाटर स्पोर्ट का आनंद लेना।
क्या हुआ, कब और कहाँ?
अखिलेश यादव ने यह डुबकी 26 जनवरी 2025 को महाकुंभ के दौरान लगाई। इस दौरान लाखों श्रद्धालु गंगा में स्नान कर रहे थे, और यह घटना हरिद्वार के कुंभ मेले में घटित हुई। इस विशाल धार्मिक आयोजन में देश-विदेश से करोड़ों लोग हिस्सा लेने पहुंचे हैं। इस बार महाकुंभ में 11 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के स्नान करने की संभावना है।
क्यों यह महत्वपूर्ण है?
महाकुंभ का आयोजन हर 12 साल में होता है, और यह केवल धार्मिक महत्व नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण घटना है। इस प्रकार के आयोजन से देश में सांस्कृतिक एकता और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा मिलता है। साथ ही, यह भारतीय समाज की विविधता में एकता का प्रतीक भी है।
भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया
भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव के स्नान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “देर आए, दुरुस्त आए।” उन्होंने उम्मीद जताई कि अब अखिलेश यादव आस्था को चोट पहुँचाने वाले बयानों से बचेंगे। उन्होंने कहा कि महाकुंभ की विशेषता ‘अनेकता में एकता’ है। इसके साथ ही भाजपा ने यह भी कहा कि लोग यहाँ पुण्य और दान के लिए आते हैं, न कि वाटर स्पोर्ट के लिए।
अखिलेश यादव का महाकुंभ स्नान
महाकुंभ में डुबकी लगाने के बाद अखिलेश यादव की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा की गई हैं। उन्होंने इससे पहले भी गंगा स्नान किया था, जिसकी तस्वीरें वायरल हो गई थीं और उनकी फिटनेस की तारीफ हुई थी। राजनीतिक विवाद के बावजूद, उनकी यह डुबकी एक धार्मिक आस्था का प्रतीक मानी गई है।
महाकुंभ का महत्व
महाकुंभ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की गहराई और विविधता का भी प्रतीक है। इसमें भाग लेने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि गंगा में स्नान करने से उनके सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह आयोजन न केवल व्यक्तिगत भलाई का प्रतीक है, बल्कि सामूहिक सद्भावना का भी एक अच्छा उदाहरण है।
अखिलेश यादव और भाजपा की राजनीति
अखिलेश यादव का महाकुंभ में स्नान न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाता है, बल्कि यह एक राजनीतिक संदेश भी है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस स्नान का उद्देश्य आगामी चुनावों में सपा के लिए समर्थन जुटाना हो सकता है। यह चुनावी वर्ष है और ऐसे समय में धार्मिक आयोजनों का महत्व बढ़ जाता है।
भाजपा के इस तंज को देखकर यह लग रहा है कि पार्टी इस समय अपने समर्थकों को दिखाना चाहती है कि वे धार्मिक आस्था को गंभीरता से लेते हैं। इस प्रकार के बयान इस बात का संकेत देते हैं कि महाकुंभ और इसके महत्व को लेकर राजनीतिक पार्टियों के बीच प्रतिस्पर्धा जारी है।
महाकुंभ एक विशाल आयोजक है, जिसमें केवल स्नान नहीं, बल्कि विभिन्न धार्मिक गतिविधियाँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। श्रद्धालु यहाँ आते हैं केवल पुण्य कमाने के उद्देश्य से, और ऐसा माना जाता है कि यहाँ का हर कण आस्था से भरा होता है।
सार्वजनिक प्रतिक्रिया
महाकुंभ में स्नान के बाद अखिलेश यादव की तस्वीरें तेजी से सोशल मीडिया पर साझा की जा रही हैं। जहाँ कुछ लोग उनकी तस्वीروں को धार्मिक आस्था का प्रतीक मान रहे हैं, वहीं कुछ अन्य इसे राजनीतिक स्टंट के रूप में देख रहे हैं। इस पर विभिन्न प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि लोकसभा चुनावों के लिए भी एक मंच बन गया है।
इस प्रकार, महाकुंभ न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह राजनीति का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। इस आयोजन का महत्व आगे भी बना रहेगा, और नेताओं द्वारा इसे अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया जाता रहेगा।
ऐसे में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे आने वाले दिनों में इस महाकुंभ कार्यक्रम पर नेताओं की प्रतिक्रियाएँ और भी क्या रूप धारण करेंगी।

