कोचिंग माफिया, पेपर लीक, मानसिक बोझ, और मेडिकल क्षेत्र में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए विकेंद्रीकरण और सुधार की आवश्यकता
नीट (NEET) परीक्षा का मुख्य उद्देश्य मेडिकल कॉलेजों में दाखिला के लिए योग्यता का एक मानक बनाना है। लेकिन समय के साथ, इसमें कई समस्याएं उभर कर सामने आई हैं। सबसे बड़ी समस्या कोचिंग सेंटरों का माफिया जैसा रोल है। इन सेंटरों ने विद्यार्थियों पर अत्यधिक दबाव डाल दिया है और कई बार पेपर लीक के घोटालों में भी उनकी भागीदारी पाई गई है। इसके अलावा, आत्महत्या के मामलों, मानसिक बोझ, और मेडिकल फील्ड में करप्शन की भी गंभीर समस्याएं सामने आई हैं।
कोचिंग माफिया का प्रभाव
कोचिंग सेंटरों ने खुद को नीट परीक्षा के लिए आवश्यक बना लिया है। विद्यार्थियों और उनके माता-पिता को लगता है कि बिना कोचिंग के नीट परीक्षा में सफल होना असंभव है। यह न केवल एक भारी आर्थिक बोझ डालता है बल्कि विद्यार्थियों पर मानसिक दबाव भी बढ़ाता है। कोचिंग सेंटरों की फीस अत्यधिक होती है और यह कई परिवारों के लिए एक बड़ी चुनौती है। उदाहरण के लिए, कोटा, राजस्थान में कोचिंग फीस 1.5 लाख से 3 लाख रुपये प्रति वर्ष तक हो सकती है।
पेपर लीक घोटाला
पेपर लीक के मामलों ने नीट परीक्षा की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह न केवल परीक्षा प्रणाली को कमजोर करता है बल्कि विद्यार्थियों की मेहनत पर भी पानी फेरता है। ऐसे घोटालों में कोचिंग सेंटरों की भागीदारी की खबरें आम हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह माफिया कितना प्रभावशाली है। 2021 में, राजस्थान और महाराष्ट्र में नीट परीक्षा के पेपर लीक की खबरें आई थीं, जिससे कई छात्रों के भविष्य पर असर पड़ा।
आत्महत्या और मानसिक बोझ
कोचिंग और नीट परीक्षा के अत्यधिक दबाव के चलते कई विद्यार्थी आत्महत्या कर चुके हैं। 2018 में, कोटा में 20 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या की थी। यह स्थिति स्पष्ट करती है कि नीट परीक्षा और कोचिंग सेंटरों का दबाव विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य पर कितना बुरा प्रभाव डाल रहा है। हर साल, नीट और जेईई जैसी परीक्षाओं के चलते आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
मेडिकल फील्ड में करप्शन
मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए केंद्रीयकृत परीक्षा प्रणाली ने भी करप्शन को बढ़ावा दिया है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस अत्यधिक होती है, जो 75 लाख से 1 करोड़ रुपये तक हो सकती है। यह कई विद्यार्थियों और उनके परिवारों के लिए असंभव सा होता है। इस प्रकार की अत्यधिक फीस वसूलने वाले प्राइवेट कॉलेजों पर कड़ी निगरानी और सरकारी रेगुलेशन की सख्त आवश्यकता है।
केंद्रीयकृत परीक्षा प्रणाली की असफलता
केंद्रीयकृत परीक्षा प्रणाली का उद्देश्य पारदर्शिता और समानता को बढ़ावा देना था। लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए, यह ताजरुबा काफी हद तक विफल रहा है। केंद्रीकृत प्रणाली ने केवल कोचिंग सेंटरों को और ताकतवर बना दिया है।
समाधान: विकेंद्रीकरण और सुधार
1. विकेंद्रीकरण: नीट परीक्षा को विकेंद्रीकृत करना होगा। विभिन्न राज्यों और विश्वविद्यालयों को अपनी प्रवेश परीक्षाएं संचालित करने की अनुमति देनी चाहिए। इससे परीक्षा प्रणाली में विविधता आएगी और एक ही परीक्षा पर निर्भरता कम होगी।
2. कोचिंग माफिया पर अंकुश: कोचिंग सेंटरों की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जानी चाहिए। इनकी फीस को नियंत्रित किया जाना चाहिए और विद्यार्थियों को निशुल्क या सस्ती शिक्षा संसाधन उपलब्ध कराने के प्रयास किए जाने चाहिए।
3. सीमित परीक्षाएं: विद्यार्थियों को बार-बार परीक्षाएं देने की बजाय, केवल 12वीं के बाद एक ही परीक्षा में शामिल होने का अवसर दिया जाना चाहिए। यदि वे सफल नहीं होते, तो उन्हें अन्य कैरियर विकल्पों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अधिकतम दो परीक्षाओं की अनुमति होनी चाहिए जिससे विद्यार्थी अन्य विकल्पों की तलाश कर सकें।
4. शून्य कोचिंग केंद्र का इनवॉल्वमेंट: परीक्षाओं को इस तरह डिजाइन किया जाना चाहिए कि कोचिंग सेंटरों की भूमिका न्यूनतम हो। इसके लिए स्कूल शिक्षण में सुधार और शिक्षा के प्रति समर्पण बढ़ाने की आवश्यकता है।
5. प्राइवेट कॉलेजों पर सरकारी रेगुलेशन: प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की अत्यधिक फीस पर सरकारी रेगुलेशन की सख्त आवश्यकता है। सरकार को इन कॉलेजों की फीस को नियंत्रित करना चाहिए और छात्रों को सस्ती और गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
नीट परीक्षा प्रणाली में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है। विकेंद्रीकरण, कोचिंग माफिया पर अंकुश, सीमित परीक्षाएं, शून्य कोचिंग केंद्र का इनवॉल्वमेंट, और प्राइवेट कॉलेजों पर सरकारी रेगुलेशन से परीक्षा प्रणाली अधिक न्यायसंगत और पारदर्शी बनेगी। इससे न केवल विद्यार्थियों का मानसिक दबाव कम होगा बल्कि आत्महत्या के मामलों में भी कमी आएगी। इसके साथ ही, मेडिकल फील्ड में करप्शन को भी नियंत्रित किया जा सकेगा, जिससे सभी छात्रों को समान अवसर मिल सकें।

