सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के मामले में सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण निर्देश दिए
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए 11 अगस्त को दिए गए आदेश पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस दौरान न्यायालय ने स्पष्ट किया कि हस्तक्षेप याचिका दायर करने वाले सभी लोगों को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। कोर्ट ने यह भी बताया कि आवारा कुत्तों की समस्या स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही के कारण बढ़ी है और यह उस समय की बात है जब अनेक नागरिक इस मुद्दे से प्रभावित हो रहे हैं।
इस मामले में, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि दिल्ली में आवारा कुत्तों से जुड़े मामलों ने बच्चों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरे में डाल दिया है। उन्होंने आंकड़े पेश करते हुए कहा कि 2024 में देश में कुत्तों द्वारा काटे जाने के 37 लाख मामले सामने आए और इनमें से 305 मौतें रेबीज के कारण हुई। यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की गई थी, जहाँ सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।
आवारा कुत्तों का समस्या का समाधान कब और कैसे होगा?
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में कई महत्वपूर्ण बातें सामने आई हैं। पहले, आवारा कुत्तों को पकड़ने की प्रक्रिया को लेकर स्थानीय अधिकारियों की नाकामी पर सवाल उठाए गए। अदालत ने कहा कि यह समस्या स्थानीय अधिकारियों की लापरवाही और निष्क्रियता के कारण है। उन्होंने याद दिलाया कि नियमों का पालन न करने के कारण स्थिति इस हद तक पहुँच गई है। न्यायालय ने स्थानीय अधिकारियों से पशु जन्म नियंत्रण नियमों के कार्यान्वयन के बारे में पूछा, यह सुनिश्चित करते हुए कि कानूनों का पालन किया जाए।
दिल्ली सरकार ने इस मामले में भी अपनी बात रखी, जिसमें कहा गया कि बच्चों को आवारा कुत्तों के काटने से गंभीर खतरा है। सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट में बच्चों के खेलने के लिए सुरक्षित स्थानों की कमी के बारे में चिंता व्यक्त की और कहा कि ऐसी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाने की आवश्यकता है।
सिब्बल और सिंघवी की बहस में समस्या की गंभीरता
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस मुद्दे की गंभीरता को बताते हुए कहा कि यह आवश्यक है कि इस पर गहराई से बहस की जाए। उन्होंने 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों पर रोक लगाने की मांग की। उनके अनुसार, यह देखना अनिवार्य है कि क्या नगर निगम ने कुत्तों के लिए आश्रय गृह स्थापित किए हैं और क्या कुत्तों की नसबंदी की गई है। उनका तर्क यह था कि केवल कुत्तों को उठाने से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि एक सतत योजना बनाना आवश्यक है।
वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस आदेश का विरोध करते हुए कहा कि इस साल दिल्ली में रेबीज से कोई मौत नहीं हुई है, और कुत्तों के काटने की घटनाएँ एक महत्वपूर्ण चिंता हैं। उन्होंने न्यायालय से आग्रह किया कि वे भयावह स्थिति पैदा न करें, बल्कि समाधान की ओर ध्यान केंद्रित करें।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का महत्व
11 अगस्त को, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अविलंब सभी क्षेत्रों से आवारा कुत्तों को उठाएं और उन्हें आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करें। अदालत ने यह भी कहा कि अधिकारियों को आठ सप्ताह के भीतर बुनियादी ढांचे का निर्माण और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित किया गया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आवारा कुत्तों को आश्रय स्थलों में ही रखा जाएगा और उन्हें सड़कों या सार्वजनिक स्थानों पर नहीं छोड़ा जाएगा।
इस दिशा में उठाए गए कदमों की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि कई नागरिक, विशेषकर बच्चे, आवारा कुत्तों के काटने के चलते भयभीत हैं। कोर्ट ने इस मामले को लेकर सही दिशा में निर्णय लेने हेतु सभी संबंधित पक्षों के विचारों को सुना।
स्थानीय अधिकारियों की ज़िम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने स्थानीय अधिकारियों को इस विषय पर पूर्ण ज़िम्मेदारी लेने की बात कही है। इसका अर्थ यह है कि उन्हें न केवल आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान खोजना चाहिए, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी चाहिए कि भविष्य में ऐसे हालात न बनें। अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वे सभी संबंधित नियमों का पालन करें और आवारा कुत्तों के प्रबंधन के लिए एक ठोस योजना तैयार करें।
यदि आप इस मुद्दे पर और अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आप[दिल्ली सरकार का आधिकारिक वेबसाइट](https://www.delhi.gov.in) देख सकते हैं या विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर भी जा सकते हैं।
बहरहाल, इसके समाधान की दिशा में यह आवश्यक है कि सभी पक्ष संज्ञान में लें और एक सहमति बनाकर आगे बढ़ें। एक कार्यशील रणनीति और सही मंशा से ही इस समस्या का स्थायी समाधान निकालना संभव है।
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