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Tuesday, September 16, 2025

बिहार में नागरिकता सत्यापन से चुनावी राजनीति में उभरा नया विवाद

इंडियाबिहार में नागरिकता सत्यापन से चुनावी राजनीति में उभरा नया विवाद

बिहार में चल रहे मतदाता पुनरीक्षण की प्रक्रिया में उठे सवाल: क्या यह एक नया एनआरसी है?

बिहार में हाल ही में शुरू हुआ विशेष मतदाता पुनरीक्षण अभियान कई विवादों को जन्म दे रहा है। राज्य सरकार ने इस प्रक्रिया के दौरान मतदाताओं से उनकी नागरिकता सत्यापित करने के लिए अतिरिक्त दस्तावेज मांगे हैं, खासकर उन लोगों से जो 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं हैं। इस कदम को लेकर विपक्षी दलों ने गंभीर आपत्ति जताई है। उनका आरोप है कि यह एक चुपचाप लागू किया जा रहा एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) का प्रयास है, जिससे असंगठित तरीके से नागरिकता की जांच की जा रही है।

इस प्रक्रिया में ईसीआई (भारत निर्वाचन आयोग) ने नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत नागरिकों को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया है और इसके आधार पर आवश्यक दस्तावेज़ों की मांग की जा रही है। इन श्रेणियों में 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे व्यक्तियों, 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे व्यक्तियों और 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे व्यक्तियों के लिए अलग-अलग नियम निर्धारित किए गए हैं। इस प्रक्रिया ने एक बार फिर नागरिकता से जुड़े मसलों को राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बना दिया है।

किसी भी नागरिक को किस प्रकार के दस्तावेज पेश करने होंगे?

इस विशेष मतदाता पुनरीक्षण प्रक्रिया में, भारत निर्वाचन आयोग ने मतदाताओं को तीन विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया है। पहली श्रेणी में वे लोग शामिल हैं जो 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे हैं। ऐसे व्यक्तियों को अपने जन्म प्रमाणपत्र या जन्म स्थान का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा। दूसरी श्रेणी में वे लोग जो 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे हैं, उनके लिए खुद का और एक माता या पिता का प्रमाण प्रस्तुत करना अनिवार्य है। तीसरी श्रेणी में 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे व्यक्तियों को अपने अलावा दोनों माता-पिता के प्रमाण प्रस्तुत करने होंगे।

इस नियम के लागू होने से पहले, 2003 की मतदाता सूची के पुनरीक्षण के दौरान केवल फोटो पहचान पत्रों की जांच की जाती थी। बिहार में इस बार की प्रक्रिया में अतिरिक्त दस्तावेज मांगने का निर्णय काफी विवादास्पद रहा है। जैसे कि आलोचकों का कहना है कि इससे कमजोर वर्गों, विशेषकर अल्पसंख्यकों, दलितों, और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मतदान के अधिकार से वंचित करने का खतरा बढ़ गया है।

विपक्ष की प्रतिक्रिया और चिंता

इस कदम की आलोचना करते हुए विपक्ष ने कहा है कि यह बिना किसी सार्वजनिक बहस या संसदीय स्वीकृति के लागू हो रहा है। उनका तर्क है कि इस प्रकार के दस्तावेजों की मांग आम नागरिकों पर अनावश्यक बोझ डालती है। इसके साथ ही यह प्रक्रिया असम में हुए एनआरसी की याद दिलाती है, जिसमें बहुत से लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा था।

विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद बिहार विधानसभा चुनावों के ठीक पहले उठाने का एक रणनीतिक प्रयास हो सकता है, जो वोटरों को विभाजित करने का कार्य कर सकता है। विपक्षी पार्टियों ने स्पष्टता और पारदर्शिता की मांग की है, और इस प्रक्रिया को चुनावी समय के दौरान निलंबित करने की भी गुहार लगाई है।

राजनीतिक प्रभाव और आगे की राह

बिहार में यह मुद्दा न केवल चुनावी राजनीति में एक नई बहस का हिस्सा बना है, बल्कि यह राज्य में सामाजिक अशांति का कारण भी बन सकता है। कई नेता और विश्लेषक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि नागरिकता जैसे संवेदनशील मुद्दों को चुनावी प्रक्रिया से अलग रखा जाना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर राज्य में गंभीर राजनीतिक और सामाजिक विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।

बिहार के चुनावी परिदृश्य में यह मुद्दा केवल मतदाता पुनरीक्षण तक ही सीमित नहीं रहेगा। यह समाज के विभिन्न तबकों में असंतोष और अविश्वास को भी बढ़ावा दे सकता है। इसी कारण से, विपक्षी दलों ने यह सुनिश्चित करने के लिए आवाज उठाई है कि इस प्रक्रिया की पुनरीक्षा की जाए और इसे चुनावी राजनीति से अलग रखा जाए।

निष्कर्ष के बजाय—आगे की सोच

बिहार में नागरिकता सत्यापन के मुद्दे पर चल रहे विवाद ने स्पष्ट किया है कि कैसे संवेदनशील मुद्दे, जैसे नागरिकता, राजनीति के मैदान में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। विशेष रूप से इस तरह के मुद्दे चुनावों के समय राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण हथियार बन सकते हैं। नागरिकता का सवाल हमेशा से एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा रहा है, और इसका राजनीति में उपयोग केवल इससे जुड़े विवादों को बढ़ा सकता है।

इस प्रक्रिया को लेकर चल रही प्रतिक्रियाओं को आगे समझने के लिए संबंधित वेबसाइट[प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया](https://www.pti.in) की रिपोर्ट का भी संदर्भ लिया जा सकता है, जिसमें इस मुद्दे की गहराई से चर्चा की गई है।

इस प्रकार, यह विवाद न केवल बिहार की राजनीतिक स्थिति को प्रभावित करेगा, बल्कि इसका असर भविष्य में राष्ट्रीय स्तर पर भी देखने को मिल सकता है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और विपक्ष इस मुद्दे पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया देते हैं।

 

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