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Wednesday, November 12, 2025

दीन-ए-इलाही और बादशाह अकबर की सांप्रदायिक सौहार्द्र की कोशिश

इंडियादीन-ए-इलाही और बादशाह अकबर की सांप्रदायिक सौहार्द्र की कोशिश

सुलह-ए-कुल की नीति में दीन-ए-इलाही का सार मौजूद था जिसे बादशाह अकबर ने न केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए बल्कि सामान्य शाही प्रशासनिक नीति और अपनी धार्मिक सद्भाव के एक हिस्से के रूप में अपनाया था

मुग़ल शासक जलाल उद्दीन अकबर का जन्म भारत के सिंध प्रान्त के अमर कोट के राजपुताना इलाक़े में 1542 में हुआ था,अर्थात वह जन्म से भारतीय था। चूँकि उसकी परवरिश भारत में हुई थी इस लिए उसने विभिन्न धर्मों के लोगों को एक साथ रहते सहते देखा था। भारत के मिले जुले कल्चर का अकबर पर इतना प्रभाव पड़ा कि उसने सत्ता प्राप्त होने के बाद सभी धर्मों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की कोशिश शुरू कर दी।

अकबर ने भारत के भविष्य को सब के साथ मिलजुल कर रहने से जोड़ा और सुलह ए कुल (सब के साथ शांति और सद्धभाव ) का विचार देश वासियों के सामने पेश किया उसने दीन ए ईलाही के नाम से एक पहल की और भारत में सब से पहले सर्वधर्म सभा का आयोजन करने के लिए फतेह पुर सीकरी में एक विशेष इबादत खाना(प्रार्थना स्थल) बनवा कर एक नई मिसाल पेश की।

उसने सभी धर्मों के लोगों को एक साथ बिठा कर धार्मिक एकता स्थापित करने का अनूठा प्रयास किया। 580 वर्ष पूर्व अकबर ने धार्मिक एकता स्थापित करने की जो कोशिश की थी उसका विरोध भी हुआ और उस को समर्थन भी मिला।

कुछ लोगों को लगा कि अकबर ने कोई नया धर्म दुनिया के सामने पेश किया है, जबकि कुछ इतिहासकारों की राय है कि नया धर्म पेश करने की बात ग़लत है।

दीन-ए-इलाही को एक नए धर्म के रूप में में मानना ग़लत

दीन ए इलाही की विकिपीडिया में इस तरह व्याख्या की गई है “दीन-ए-इलाही के एक नया धर्म होने का सिद्धांत गलत धारणा है, जो कि बाद में ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा अबुल फजल के कार्यों के गलत अनुवाद के कारण पैदा हुआ था। हालांकि, यह भी स्वीकार किया जाता है कि सुलह-ए-कुल की नीति,जिसमें दीन-ई-इलाही का सार था, अकबर ने केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि सामान्य शाही प्रशासनिक नीति का एक भाग के रूप में अपनाया और अपनी धार्मिक सहानुभूति की नीति का आधार बनाया।

1605 में अकबर की मौत के समय उस की मुस्लिम जनता में असंतोष का कोई संकेत नहीं था, और अब्दुल हक (शेख़ अब्दुल हक़ मोहद्दिस देहलवी) जैसे एक धर्मशास्त्री की धारणा भी यही थी कि निकट संबंध बने रहे।”

दीन-ए-इलाही का खंडन

हालांकि बंगाल के सूबे के क़ाज़ी और प्रसिद्ध धर्म गुरु अहमद उल फ़ारूक़ सरहिंदी ने अकबर के दीन ए ईलाही के विचार को पूरी तरह से निरस्त किया और उसको इस्लाम विरोधी बताया। इसकी एक वजह यह थी की कुछ मुस्लिम उलेमा को लग रहा था कि अकबर कोई नया धर्म ला रहा है जबकि आम लोगों को लगता था कि अकबर की कोशिश केवल इतनी थी की सब लोग एक दूसरे के धर्म को समझें और एक दूसरे के धार्मिक विचारों का आदर करना सीखें।

उसने सभी धर्मों को आपस में जोड़ने की कोशिश की थी उनका विलय करने की बात नहीं की थी। सच कुछ भी हो अकबर का यह प्रयास फतेहपुर सीकरी के भव्य भवनों से आगे नहीं बढ़ सका लेकिन कम से कम इतना तो हुआ कि भारत वासियों को पहली बार सेकुलरइज़्म के नज़रिये से परिचित होने का मौक़ा मिला।

सूफी संतों के लिए अकबर का सम्मान

अकबर की विशेषता यह थी कि वह सूफ़ी संतों का बहुत एहतिराम करता था उसने कई बार अजमेर में ख्वाजा अजमेरी के मज़ार पर हाज़री दी और फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती के मज़ार के इर्द गिर्द ही पंच महल नाम का भवन बनवाया। अकबर को शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति हुई थी इसी लिए अकबर ने अपने पहले बेटे का नाम सलीम रखा।

जहांगीर और ईस्ट इंडिया कंपनी

अकबर के बाद उसका यही पुत्र नूरुद्दीन मोहम्मद सलीम जहांगीर के उपनाम से गद्दी पर बैठा। जहांगीर के युग में ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में क़दम रखे और जहांगीर को खूब महंगी महंगी विदेशी शराब पिला पिला कर उसका दिल जीत कर भारत में क़दम जमाने का रास्ता बनाया।

जहांगीर के युग में ही पुर्तगाली सेना ने भारतीय हज यात्रियों से भरा रहीमी नाम का पानी का एक जहाज़ अग़वा कर लिया जिस के बाद जहांगीर ने पुर्तगालियों के क़ब्ज़े वाले शहर दमन पर क़ब्ज़ा करने और देश में मौजूद सभी पुर्तगालियों को पकड़ने और उनके गिरजा घरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया।

जहांगीर को अपने ही पुत्रों के विद्रोह का सामना करना पड़ा और उसको अपने बड़े बेटे खुसरू मिर्ज़ा को जेल भेजना पड़ा और फिरअपने दूसरे बेटे शहज़ादा खुर्रम (शाहजहाँ) से भी युद्ध करना पड़ा (इसकी अधिक जानकारी अगले भाग में दी जायेगी)।

जहांगीर ने उस समय के शिया और सुन्नी उलेमा पर भी बहुत ज़ुल्म किये। शिया धर्मगुरु क़ाज़ी नूर उल्लाह शुस्तरी को झूठे इल्ज़ामों में मौत की सज़ा दी जबकि उनको सर्वोच्च क़ाज़ी के पद पर अकबर ने नियुक्त किया था। दूसरी ओर उसने प्रख्यात सुन्नी धर्म गुरु अहमद उल फ़ारूक़ सरहिंदी को बहुत प्रताड़ित किया, उनको जेल में भी डाला।

वैसे जहांगीर को धर्म से कम और शराब, कबाब और शबाब में दिलचस्पी ज़्यादा थी। उसने ही अंग्रेज़ों को भारत में पहले फ़ैक्टरी लगाने की अनुमति दे कर मुग़ल शासन के विनाश की कहानी का पहला अध्याय लिखा। (जारी)

1 – पहला भाग

2 – दूसरा भाग

3 – तीसरा भाग

4 – चौथा भाग

5 – पांचवां भाग

6 – छठा भाग

7 – सातवां भाग

8 – आठवां भाग

9 – नौवां भाग

10 – दसवां भाग

11 – ग्यारहवां भाग

12 – बारहवां भाग

13 – तेरहवां भाग

14 – चौदहवाँ भाग

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