भारतीय मुस्लिम शासकों द्वारा किए गए सभी युद्धों का इस्लाम या मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं था और केवल सत्ता और सिंहासन के लिए लड़ाई थी जिसमें लाखों मुस्लिम सैनिक मारे गए।
बाबर मध्य एशिया के अंदीजान (आज के उज़्बेकिस्तान) में पैदा हुआ था वह चंगेज़ खान और तैमूर का वंशज था। एक बड़ी सलतनत स्थापित करना उसका सपना था। इस लिए पहले उसने मध्य एशिया की मुस्लिम हुकूमतों पर हमला किया। भारत पर हमला करने से पहले बाबर समरक़ंद और फ़रग़ना की मुस्लिम सेनाओं को हरा चुका था। उनसे ईरान के बादशाह इस्माईल सफ़वी की मदद से तुर्किस्तान और शीबानियान (आज के खज़ाक़िस्तान) पर क़ब्ज़ा करके वहां में मुस्लिम शासकों को मार दिया था।
फिर भी समरक़ंद उसके हाथ से निकल गया (इन लड़ाइयों में बाबर ने कितने मुसलमान मारे उसका हिसाब किसी के पास नहीं है) मगर समरक़ंद में हारने के बावजूद बाबर भारत पर राज कर रही लोधी हुकूमत को जड़ से उखाड़ने का प्लान बना चुका था। बाबर की चालाकी देखिये कि वह हमला तो कर रहा था लोधी वंश के मुसलमान शासक पर मगर सिपाहियों को भर्ती करने के लिए कह रहा था कि वह काफ़िरों के विरुद्ध जिहाद करने जा रहा है। जबकि बहुत से लोगों का मानना था कि बाबर को मेवाड़ के शासक राणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) ने इब्राहीम लोधी की हुकूमत पर हमला करने के लिए उकसाया था। अर्थात इस जंग का भी इस्लाम से कोई संबंध नहीं था।
मुग़ल साम्राज्य
भारत पर जब बाबर ने हमला किया तो लोधी वंश इतना कमज़ोर हो चुका था की वह सिंध और पंजाब को पार करता हुआ दिल्ली के नज़दीक पानीपत तक आ गया। बाबर के हमले का लोधी ने एक बड़ी सेना के साथ मुक़ाबला किया लेकिन बाबर की सेना के पास तोपें थीं जिसका मुक़ाबला इब्राहीम लोधी की भारतीय सेना नहीं कर सकी, इस युद्ध में एक लाख से ज़्यादा मुसलमानों ने बाबर के विरुद्ध लड़ते हुए अपनी जानें क़ुर्बान कीं फ़िर भी उनकी प्रशंसा करने वाला कोई नहीं। बल्कि कुछ लोग तो मामले के सांप्रदायिक रंग देने के लिए कहते हैं की बाबर ने लाखों हिन्दुओं को मारा जबकि इतिहास कहता है कि मध्य एशिया से ले कर भारत तक बाबर ने लाखों मुसलमानों का ख़ून बहाया।
बाबर के हाथों लोधी वंश का समापन होने के बाद 1526 ई० में भारत पर मुग़लों का राज हो गया जो 1857 तक किसी न किसी तरह चला। बाबर के बाद उसका बेटा हुमायूँ तख्त पर बैठा मगर उसको एक मुसलमान सेनानी शेर शाह सूरी ने अपदस्त कर के देश छोड़ कर जाने पर मजबूर कर दिया। शेर शाह सूरी ने सासाराम (बिहार) को अपनी राजधानी बनाया।
किसी भी युद्ध का संबंध धर्म से नहीं था
उसी ने सब से पहले कोलकाता से काबुल जाने वाली सड़क का निर्माण किया। उसने रुपए नाम की करेंसी शुरू की लेकिन अपने से पहले के शासकों के बनवाये हुए शहर और क़िले ध्वस्त करने में भी वह काफ़ी आगे रहा। शेरशाह सूरी ने 1540 ई० में कन्नौज के पास हुए युद्ध में मुग़ल सेना को करारी मात दी जिसके बाद हुमायूँ को अपनी जान बचाने के लिए ईरान भागना पड़ा और वहां 15 साल तक रहना पड़ा बाद में ईरान के शाह त्मास्प सफ़वी की मदद से वह सूरी वंश को खत्म कर के 1555 ई० में दोबारा बाबर के तख़्त पर बैठ सका। इन सब यद्धों से इस्लाम या मुसलमानों का कुछ लेना देना नहीं था सिर्फ गद्दी की लड़ाई थी जिस में मुस्लिम सिपाही मारे जाते थे।
हुमायूँ का निधन 1556 में पुराने क़िले में पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिर कर हुआ।
एक मुगल बादशाह का मकबरा और हजरत निजामुद्दीन औलिया का मकबरा
जो लोग बादशाहों के साथ मुसलामानों के लगाओ का इलज़ाम लगाते हैं उनको दिल्ली की मथुरा रोड का एक चक्कर लगाना चाहिए। इस सड़क की बाईं ओर स्थित है एक मुग़ल बादशाह का मक़बरा और उसी सड़क के दाहिने किनारे पर है एक पीर का मक़बरा जिस को दुनिया हज़रत निजामुद्दीन औलिया के नाम से याद करती है। आप को
दोनों मक़बरों में बहुत बड़ा फ़रक़ नज़र आएगा एक मक़बरे की खूबसूरती देखने के लिए टूरिस्ट टिकट ले कर आते हैं, मगर कोई टूरिस्ट एक फूल भी नहीं रखता उस बादशाह की क़ब्र पर जिसके रास्ते में फूल बिछे रहते थे, जबकि सड़क के उस पार मौजूद हज़रत निजामुद्दीन के दरगाह पर हर रोज़ फूलों की सैकड़ों चादरें चढ़ाई जाती हैं। हज़ारों लोग अपना सर झुकाने आते हैं। वहां आप को हिन्दू भी मिलेंगे सिख भी ईसाई भी और मुसलमान भी। एक बादशाह की क़ब्र पर कोई मुस्लमान श्रद्धा सुमन अर्पित करने नहीं जाता और इंसानों से मोहब्बत करने की शिक्षा देने वाले एक पीर के मज़ार पर मुसलमानों की भीड़ लगी रहती है , यही फ़र्क़ उन लोगों की मानसिकता पर गहरा वार करता है जो हिन्दोस्तानी मुसलमानों को बाबर की औलाद कहते हैं।
हुमायूँ की लड़ाई में हिन्दुओं का नहीं मुस्लिम सैनिकों का खून बहाया गया
हुमायूँ ने जब भारत पर हमला कर के दोबारा सत्ता ग्रहण की तब भी उस ने सूरी वंश के लिए लड़ रहे मुस्लिम सिपाहियों का ही ख़ून बहाया, हिन्दुओं का क़त्ले आम नहीं किया क्योंकि उसके सामने मुस्लिम सेना ही थी। जिस से यही बात साबित होती है कि इनमें से कोई भी लड़ाई हिन्दू मुस्लिम के बीच की लड़ाई नहीं थी, बल्कि सत्ता प्राप्ति के लिए होने वाला युद्ध था। अगले भाग में हम अकबर के बारे में बात करेंगे। (जारी)

