मुगल साम्राज्य की शुरुआत से पहले ही भारत में हिंदू-मुस्लिम एकता का दीया जल चुका था। कबीर और नानक जैसे व्यक्तित्व हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे
भारत पर शासन करने वाले बादशाहों और शहंशाहों ने ना तो इस्लामी तौर तरीकों को अपनाया और ना ही उसी प्रकार की सत्ता स्थापित करने की कोशिश की जैसी ख़िलाफ़त ए रशीदा के ज़माने में थी । उन्होंने अलबत्ता बड़े बड़े क़िले और शानदार मस्जिदें बनवाईं ।
पैगंबर साहिब, उनके परिवारजनों या सहाबा का आचरण ना तो इन बादशाहों के चरित्र में दिखा और ना इनके महलों में इस्लाम की कोई झलक दिखाई पड़ी। कुछ शासकों ने भारत की संस्कृति को पूरी तरह से अपनाते हुए नृत्य, संगीत और अन्य कलाओं को बढ़ावा दिया।
मुस्लिम शासकों की अधिकांश युद्ध आपस में ही हुई न कि हिन्दू शासकों से
कुछ साम्प्रदायिक तत्व हिन्दू राजाओं या शासकों के साथ मुस्लिम शासकों के युद्ध को हिन्दू मुस्लिम युद्ध के रूप देखते हैं जबकि मुस्लिम शासकों की अधिकतर लड़ाइयां मुस्लिम शासकों से ही हुईं। आप भारत के इतिहास पर नज़र डालें तो देखेंगे कि ग़ुलाम वंश की सलतनत के पहले शासक क़ुतुब उद्दीन ऐबक के मरने के बाद आराम शाह को राज्य मिला लेकिन उसको कुछ ही दिन में ऐबक के दामाद इल्तुतिमश ने उसको मार दिया।
फिर रज़िया सुलतान को मौक़ा मिला मगर रज़िया सुलतान को अल्तुनिया ने तख़्त से हटाया अल्तुनिया की बहराम शाह से हार हुई और बहराम शाह के बाद बलबन और फिर क़ैक़बाद का क्या हश्र हुआ? गुलाम वंश के बाद ख़िलजी वंश को सलतनत मिली।
मुस्लिम साम्राज्य की वापसी और मुगल काल
खिलजी वंश को गयासुद्दीन तुग़लक़ ने समाप्त किया। तुग़लक़ की सलतनत पर अमीर तैमूर ने हमला किया, ज़ाहिर है कि तैमूर ने एक मुस्लिम शासक पर हमला किया और उसका मुक़ाबला करने के लिए मुस्लिम सेना ही मैदान में उत्तरी, यानी दोनों तरफ़ से मुसलमान ही मारे गए और इतने खून खराबे के बाद खुद तैमूर ने भारत पर राज नहीं किया और अपनी जगह पर सय्यद वंश को सत्ता सौंप कर वापस चला गया मगर सय्यद वंश के लोगों ने 36 वर्ष तक राज्य करने के बाद खुद ही सत्ता त्याग कर लोधियों के हवाले कर दी। लोधी वंश ने 76 साल तक देश पर राज किया।
इसी बीच सेन्ट्रल एशिया से बाबर ने भारत पर हमला करने का प्लान बनाया। जिसके बाद मुग़ल सलतनत का आगाज़ हुआ मगर मुग़ल सलतनत के बारे में बात करने से पहले यह बताता चलूँ कि मुग़लों के आने से पहले ही भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता के दीपक जलने लगे थे।
मुगल सल्तनत शुरू होने से पहले ही मुस्लिम-हिंदू एकता मजबूत थी
बनारस में कबीर दास के रूप में एक ऐसा कवि मौजूद था जिसको हिन्दू हिन्दू समझते थे और मुसलमान उस कवि को मुसलमान समझते थे। कबीर दास जी का पालन पोषण कपड़ा बुनने वाले एक मुस्लिम परिवार में हुआ था कहा जाता है कि उनका जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था जिसने उनको त्याग दिया था। कबीर दास की कविता ऐसी थी कि उनके जीवन में तो हिन्दू और मुस्लिम उनके विरुद्ध रहा करते थे मगर बाद में उनको अपना आदर्श मानने लगे। यह कबीर दास जी के सफल जीवन का एक नमूना था कि जब उन्होंने मगहर में प्राण त्यागे तो उनके अंतिम संस्कार के लिए मुसलमानों और हिंदुओं में विवाद हो गया। कहा जाता है कि हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक बन जाने वाले इस महान कवि की लाश पर से चादर हटाई गई तो उसमें उनकी लाश के बजाय कुछ फूल थे जिनको हिन्दुओं और मुसलमानों ने आधा आधा बांट कर अपने अपने अपने हिसाब से अंतिम संस्कार किया। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि कबीर दास जी को अपना देवता मानने वालों का भी एक वर्ग है जिसको कबीर पंथ कहा जाता है।
बाबा गुरु नानक देव ने हिंदू-मुस्लिम एकता को रोशन किया
भारत में हिन्दू मुस्लिम एकता का चिराग़ रौशन करने वाले दूसरे महान व्यक्ति को आज सारा संसार बाबा गुरु नानक देव के नाम से जानता है। बाबा नानक का जीवन भी पूरी तरह से इंसानियत को समर्पित था इसी लिए उनको हिन्दू और मुसलमान आदर की नज़र से देखते थे उनका जीवन ऐसा था कि हिन्दू उनको अपने धर्म का मानते थे और मुसलमान उनको अपने मज़हब का मानते थे।
उनका जन्म ननकाना साहिब में हुआ था और उनका निधन पंजाब के करतारपुर में हुआ था जब उनका निधन हुआ तो उनके अंतिम संस्कार के लिए भी हिन्दू और मुसलमान वर्ग में वैसा ही विवाद पैदा हो गया जैसा कबीर दास के देहांत के वक़्त हुआ था और इस बार भी एक चमत्कार हुआ और ख़ुदा के इस पाक बंदे का पवित्र जिस्म मरने के बाद फूलों में बदल गया जिस के बाद आधे फूल क़ब्र में रखे गेय और आधे अग्नि को सौंप दिए गए।
बाबा नानक देव ने भी दुनिया को एकेश्वर वाद मानवता का सबक़ दिया। बाबा गुरु नानक को हिन्दू और मुस्लिम इतना प्यार करते थे कि दोनों वर्गों में से कुछ लोग निकले और बाबा गुरु नानक की शिक्षाओं पर चलने लगे इस कारण भारत में एक नए धर्म की आधार शिला रखी गई। इस धर्म को आज हम सब सिख क़ौम के नाम से जानते और पहचानते हैं और इस क़ौम के पहले गुरु और संस्थापक बाबा नानक देव जी हैं।
अगले भाग में हम बाबर के हमले और इब्राहीम लोधी के उससे टकराव का क़िस्सा जारी रखेंगे।
(जारी)

